धमतरी. माहे रमजान में मुस्लिम भाई रोजा रखकर खुदा की इबादत में लगे हुए हैं। इस मौके पर जगह-जगह इफ्तार का प्रोग्राम भी हो रहा है। रोजदारों का कहना है कि इस्लाम आपसी भाईचारे और मोहब्बत का पैगाम देता है। एक साथ बैठकर इफ्तार करने से आपसी भाईचारा और मजबूत होता है। उल्लेखनीय है कि गुरूवार को १९वां रोजा मुकम्मल हो गया।
इन दिनों रमजान शरीफ का मुबारक महीना चल रहा है। मुस्लिम भाई रोजा रखकर फर्ज अदा कर रहे हैं। गुरूवार को १९वां रोजा हुआ। सुबह सहरी करने के बाद इफ्तार किया गया। मस्जिदों और मरदसों में विशेष नमाज तरावीह भी अदा की जा रही है। रमजान के चलते मुस्लिम भाई इबादत में अपना अधिक से अधिक समय लगा रहे हैं। इस्लाम में रोजा की अपनी अहमियत है। इबादत का खास महीना है। इस मुबारक महीने में अल्लाह के बंदे अपने रब का ईनाम पाने के लिए नफ्ली इबादतें करते हैं। 11 महीने मस्जिद से दूर रहने वाले, बड़े से बड़े गुनाहगार भी अल्लाह की रहमत पर यकीन रखते हुए अल्लाह के घर में अपने सजदों के नजराने पेश करते नजर आते हैं। उल्मा-ए-दीन फरमाते हैं कि अल्लाह पाक ने अपने प्यारे नबी को सब नबियों में अफजल बनाया और आपकी उम्मत को भी सारे नबियों की उम्मतों से अफजल फरमाया। इतना बड़ा मर्तबा हमें यूं ही नहीं मिला है बल्कि इसे पाने के लिए हमारे ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियां रखी गई है। अपनी इबादत हम पर फर्ज फरमाने के साथ ही अल्लाह ने अपने बंदों की रहनुमाई, खैर ख्वाही की जिम्मेदारियां भी हमारे नाजुक कंधों पर रखी है। इन दोनों जिम्मेदारियों को निभाने के बाद ही हमें वह अजीम मर्तबा हासिल हो सकेगा। इस माहे मुबारक महीने में आर्थिक रूप से संपन्न मुस्लिम भाई खैरात और जकात भी अदा कर रहे हैं। दान-पुण्य का तसौउर तकरीबन दुनिया के सभी धर्मो में है, इसीलिए हर मज्हब के लोग खास-खास मौकों पर सदका-खैरात करते हैं। दुनिया की सभी कौमें सदका- खैरात करती है, सबका अपना-अपना नजरिया व अकीदा है। मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि इस्लाम में खैरात और जकात को इबादत व सबाव का दर्जा दिया गया है। इसी मकसद के लिए तो इस्लाम में जकात फर्ज की गई, ताकि कौम के मालदार, हजरात अपने कौमी दीनी गरीब भाईयों की मदद करके उन्हें भी इज्जत व सुकून की जिंदगी जीने का मौका देते रहें। ऐसा करने वालों के माल में बरकत होती है, माल की हिफाजत रहती है और अल्लाह पाक दीन व दुनिया की भलाईयां नसीब फरमाता है।
हक अदा करते रहे
मुफ्ती तौहिद आलम का कहना है कि हमारे लिए लाजिम है कि अल्लाह पाक ने हमें जो जिम्मेदारियां सौंपी है, दयानतदारी, ईमानदारी के साथ उसे निभाएं ओर अल्लाह व रसूल का हक अदा करने के साथ बंदों के हक भी अदा करते रहे। नमाज, रोजा व जकात वगैरा की अदाएगी के साथ-साथ हम अपने मां-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों का भी हक अदा करते रहें और इसे मामूली न समझें क्योंकि अगर हम से अल्लाह की इबादत में कोई कमी रह गई तो अल्लाह चाहेगा तो अपने करम से उसे माफ फरमा देगा लेकिन याद रखिए- अगर हमसे लोगों के हक अदा करने में कोई कसर रह गई तो हरगिज-हरगिज माफ नहीं फरमाएगा।
एक और नेक बनाकर रखे
रमजान के मुबारक महीने में इफ्तार का दौर भी शुरू हो गया है। अब तक भाई मोहम्मद युसूफ रजा, मोहम्मद शाह अहमद, आदिल कुछावा, फारूख जाजम समेत कई लोगों के घरों में इफ्तार का प्रोग्राम हो चुका है। इसमें बड़ी तादात में मुस्लिम भाई शामिल हो रहे हैं। रोजदारों का कहना है कि इफ्तार के समय खुदा से मांगी गई दुवा जरूर कबूल होती है। एक साथ इफ्तार करने से भाईचारा की भावना भी बढ़ती है। खुदा हम सबको एक और नेक बनाकर रखे।

